एक दुःखी व्यक्ति किसी महापुरुष के
पास गया और उनसे सुखी रहने का उपाय
पूछने लगा ।
महापुरुष ने उत्तर दिया –” तुम
किसी सुखी व्यक्ति का कुरता ले आओ,
उसे पहनकर तुम भी सुखी हो जाओगे।”
दुःखी व्यक्ति ऐसा कुरता पाने के लिए कई
स्थानों पर भटकता रहा। अंत में उसे एक
साधु दिखाई पड़ा, जो प्रसन्नचित्त था।
उसने उस साधु से उसका कुरता माँगा तो
पता चला कि उसके पास तो कोई वस्त्र ही
नहीं है।
मात्र एक धोती, वह पहने हुए था।
उसने सारा विवरण उस साधु को कह सुनाया।
साधु बोला–” पुत्र! दुःख तो संग्रह में
ही है।
सुखी तो मात्र वह ही रह सकता है,
जो अंदर से निश्चित है और संसार में किसी
वस्तु की कामना उसे नहीं है।
जो निर्लिप्त है,
निर्विकार है, वही सुखी है।”
दुःखी मनुष्य दुःखों का कारण समझ :
गया और हँसता-मुस्कराता महापुरुष के .
पास वापस लौट गया।
उससे सारा विवरण जानकर महापुरुष
बोले–” पुत्र! यही सूत्र सुखी रहने का उपाय
है।इसी का पालन कर सभी ज्ञानीजन जीवन
भर सुखी रह पाते हैं।”